1. निम्नलिखित में से सम संख्या कौन सी है - A) 765489 B)  445566 C) 880001  D) 976541 ANSWER= (B) 445566 Check Answer   2. निम्नलिखित में से चार अंको की सबसे बड़ी संख्या कौन सी है A) 9999 B) 1000 C) 1111  D) 9998 ANSWER= (A) 9999 Check Answer   2. निम्नलिखित में से चार अंको की सबसे बड़ी संख्या कौन सी है A) 9999 B) 1000 C) 1111  D) 9998 ANSWER= (A) 9999 Check Answer

Chater 3 आनुवंशिकी (Genetics)

 अध्याय - 3 आनुवंशिकी (Genetics)  

1. आनुवंशिकी:- विज्ञान की वह शाखा जिसमें आनुवंशिक लक्षणों एवं विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है उसे आनुवंशिकी कहते है।
2. आनुवंशिक लक्षण:- वे लक्षण जो सजीवों की एक पीढी से दूसरी पीढी में स्थानान्तरित होते है आनुवंशिक लक्षण कहलाते है।
3. आनुवंशिकता/वंशगति/हैरिडीटी:- आनुवंशिक लक्षणों का जनक पीढी से संतति पीढी में संचलन ही आनुवांशिकता कहलाता है।
  • आनुवांशिकता का जनक ग्रेगर जोन मेण्डल को कहते है इनका जन्म 22 जुलाई 1822 को हुआ।

4. मेण्डल वाद:- मेण्डल ने उद्यान मटर (पाइसम सेटाइवम) पर पादप संकरण के प्रयोग किये इन प्रयोगों के परिणाम के आधार पर मेण्डल ने आनुवंशिकता के नियम बनाये जिन्हे मेण्डल वाद कहते है। जो निम्न है:-

अ. प्रभाविता/एक संकर संकरण का नियम:- इस नियम के अनुसार जब एक ही लक्षण के दो विरोधी गुण वाले पौधो के बीच संकरण कराया जाता है तो F1 पीढी में वही लक्षण दिखाई देते है जो प्रभावी होते है। इसी को प्रभाविता का नियम कहते है।
उदाहरण:- यदि शुद्ध लम्बे  (TT) पौधे का संकरण शुद्ध बौने (tt) से कराया जाता है तो प्रथम पीढी के सभी पौधे लम्बे होते है। अर्थात् केवल प्रभावी लक्षण ही दिखाई देता है। 

ब. पृथ्करण का नियम/युग्मको की शुद्धता का नियम/विसंयोजन का नियम :- इस नियम के अनुसार F1 पीढी के संकर (Tt) युग्मक बनते समय दोनो युग्म विकल्पी एक दूसरे से पृथक होकर अलग-अलग युग्मको में चले जाते है तथा अपना अस्तित्व बनाये रखते है। इसे पृथ्करण का नियम कहते है।
उदाहरण:- शुद्ध लम्बे (TT) शुद्ध बौने (tt) के संकरण से विषम युग्मजी लम्बे पौधे प्राप्त होते है। इन विषम युग्मजी लम्बे पौधो के युग्मक बनते समय दोनो युग्म विकल्पी एक दूसरे से पृथक होकर अलग-अलग युग्मको में पहूंच जाते है। जिस कारण से F2 पीढी में बौनापन (tt) का लक्षण फिर से प्रकट हो जाता है।


स. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम :- मेण्डल का यह नियम द्विसंकर संकरण पर आधारित है। इसमें जब पीले व गोल आकार बीज (YYRR) वाले मटर के पौधे तथा हरे व झुर्रीदार आकार बीज (yyrr) वाले मटर के पौधे के बीच संकरण कराया जाता है तो प्रथम पीढी F1 के सभी पौधे पीले व गोल बीज (YyRr) वाले पौधे प्राप्त हुए जिससे यह सिद्ध होता है कि पीला व गोल आकार प्रभावी लक्षण है परन्तु जब द्वितीय पीढी F2 में स्वनिषेचन होता है जो जीनो का पृथ्करण होता है तथा पुनः जीनो के संयुग्मन से मुख्यतः चार प्रकार के पौधे प्राप्त होते है -
1. पीले तथा गोलाकार बीज वाले पौधे  2. हरे तथा झुर्रीदार बीज वाले पौधे 
3. पीले तथा झुर्रीदार बीज वाले पौधे  4. हरे तथा गोलाकार बीज वाले पौधे  


युग्मक
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दो या दो से अधिक जीन युग्म साथ रहते हुए भी एक दूसरे के प्रति स्वतन्त्र व्यवहार करते है यही स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम है।                            
                                                         
5. मेण्डल की सफलता के कारण:- 
1. मेण्डल ने एक समय में एक ही लक्षण की वंशगति का अध्ययन किया।
2. मेण्डल ने अपने प्रयोगो के सभी आंकडो का सावधानी पूर्वक विश्लेषण किया।
3. मेण्डल की सफलता का प्रमुख कारण सही पादप (मटर) का चुनाव रहा।

6. मटर पादप चयन का कारण:- 
1. मटर एक वर्षीय पौधा होता है। अतः कम समय में इसकी अनेक पीढीयों का अध्ययन किया जा                          सकता है।
2. मटर के पौधे में द्विलिंगी पुष्प होते है। अतः स्वपरागण सरलता से हो जाता है।
3. मटर के पुष्प में विपुंसन विधि द्वारा कृत्रिम परपरागण आसानी से किया जा सकता है।
4. मटर के पौधे में विभिन्न (सात) विपर्यासी लक्षणों के जोडे पाये जाते है।

7. महत्वपूर्ण परिभाषायें:- 
1. जीन:- वह कारक जो आनुवंशिक लक्षणों का वहन करता है जीन कहलाता है। जीन आनुवंशिकीय विज्ञान की मूल ईकाई है।

2. जीन प्रारूप:- किसी एक लक्षण की जीन प्रदर्शन को जीन प्रारूप कहते है। जैसे मटर के समयुग्मजी पौधे की लम्बाई (TT) तथा विषम युग्मजी पौधे की लम्बाई (Tr) 

3. लक्षण प्रारूप:- किसी लक्षण का बाह्य या भौतिक प्रदर्शन लक्षण प्रारूप कहलाता है जैसे पौधा लम्बा है या बौना।

4. संकर:- जब भिन्न भिन्न लक्षणो वाले दो जनको के मध्य क्राॅस कराया जाता है तो उत्पन्न संतति को संकर कहते है।
5. एक संकर संकरण:- वह संकरण जिसमें एक लक्षण की वंशगति का अध्ययन किया जाता है उसे एक संकर संकरण कहते है।

6. द्वि संकर संकरण:- वह संकरण जिसमें दो लक्षणों की वंशगति का अध्ययन किया जाता है उसे द्वि संकर संकरण कहते है।

7. संकरपूर्वज संकरण:- जब विषम युग्मजी संकर का संकरण समयुग्मजी जनक से कराया जाता है तो इस संकरण को संकरपूर्वज संकरण कहते है।

8. परीक्षण संकरण:- जब विषम युग्मजी संकर का संकरण अप्रभावी समयुग्मजी जनक से कराया जाता है तो इसे परीक्षण संकरण कहते है।

9. व्युत्क्रम संकरण:- जब पादप (TT) को नर तथा पादप (tt) को मादा जनक के रूप में प्रयुक्त कर संकरण कराया जाता है तथा इसके विपरीत जब पादप (TT) को मादा व (tt) पादप को नर जनक के रूप में प्रयुक्त कर संकरण कराया जाता है तो इसे व्युत्क्रम संकरण कहते है।

10. बाह्य संकरण:- जब विषमयुग्मजी पादप (Tt) का संकरण प्रभावी जनक (TT) से कराया जाता है तो इस संकरण में सभी पादप लम्बे प्राप्त होते है जिनमें से 50 प्रतिशत शुद्ध लम्बे तथा 50 प्रतिशत शुद्ध बौने पादप प्राप्त होते है। इसे बाह्य संकरण कहते है।
                           
                         




 

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