1. निम्नलिखित में से सम संख्या कौन सी है - A) 765489 B)  445566 C) 880001  D) 976541 ANSWER= (B) 445566 Check Answer   2. निम्नलिखित में से चार अंको की सबसे बड़ी संख्या कौन सी है A) 9999 B) 1000 C) 1111  D) 9998 ANSWER= (A) 9999 Check Answer   2. निम्नलिखित में से चार अंको की सबसे बड़ी संख्या कौन सी है A) 9999 B) 1000 C) 1111  D) 9998 ANSWER= (A) 9999 Check Answer

अध्याय - 7 परमाणु सिद्धांत, तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण व् गुणधर्म (Atomic Theory Periodic Classification and Properties of Elements)

सर्वप्रथम महर्षि कणाद ने बताया की पदार्थ सूक्ष्मतम अविभाज्य कणों से मिलकर बना होता हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं  | पकुधा काव्यायाम ने बताया की पदार्थ के भिन्न भिन्न रूप परमाणुओ के मिलने से बनते हैं |
 डाल्टन का परमाणु सिद्धांत  डाल्टन के अनुसार -
1. पदार्थ सूक्ष्मतम कणों से मिलकर बना होता हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं |
2. परमाणु अविभाज्य कण हैं |
3. एक ही तत्त्व के सभी परमाणुओ के आकार, भार तथा रासायनिक गुणधर्म सामान होते हैं |
4. अलग अलग  तत्त्वो  के सभी परमाणु आकार, भार तथा रासायनिक गुणधर्म भिन्न भिन्न  होते हैं |
5. भिन्न भिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर छोटी पूर्ण संख्या के अनुपात में संयोग कर यौगिक बनाते हैं |
6. रासायनिक अभिक्रिया के दौरान परमाणु न तो बनते हैं न ही नष्ट होते हैं |
थोमसन का परमाणु मोडल थोमसन के अनुसार
1.परमाणु एक धनावेशित गोला होता हैं इसमें सामान मात्रा में इलेक्ट्रान वितरित होते हैं इस मोडल को प्लम पुडिंग कहा गया |
2. परमाणु में ऋणावेश तथा धनावेश की मात्रा सामान होती हैं अत परमाणु विद्युतीय उदासीन होते हैं | 

 रदरफोर्ड का स्वर्ण पत्र प्रयोग रदरफोर्ड ने सोने की पतली पन्नी (100nm) पर एल्फा कणों ( हीलियम के नाभिक ) की बौछार की | सोने की पन्नी के चारो ओर जिंक सल्फाईट से लेपित वृताकार पर्दा रखा गया जिससे एल्फा किरणों की दिशा का पता चल सके | 
इस प्रयोग से निम्न परिणाम प्राप्त हुए -
1. अधिकांश एल्फा कण सोने की पन्नी से बिना विक्षेपित हुए सीधे निकल गए |
2. बहुत कम एल्फा कण कुछ अंश कोण से विक्षेपित हुए |
3. 20000 एल्फा कणों में से एक कण पन्नी से टकराकर पुन लौट आया अर्थात 1800 से विक्षेपित हुआ |
निष्कर्ष -
1.परमाणु का अधिकांश भाग खोखला होता हैं इसलिए अधिकांश कण सीधे निकल जाते हैं |
2. कुछ एल्फा कण प्रतिकर्षण बल के कारण विक्षेपित हुए अत परमाणु के मध्य में धनावेशित भाग होता हैं |
3. परमाणु के धनावेश का आयतन कुल आयतन की तुलना में बहुत कम होता हैं | (नाभिक का आकार 10-15 मीटर )
रदरफोर्ड का परमाणु मोडल
1. परमाणु का सम्पूर्ण धनावेश तथा द्रव्यमान नाभिक में केन्द्रित होता हैं |
2. नाभिक के चारो ओर इलेक्ट्रान वृताकार पथ में चक्कर लगते हैं जिन्हें कोश या कक्ष कहते हैं | (सौर मोडल का प्रतिरूप )
3. परमाणु विद्युत उदासीन होता हैं अत परमाणु में जितने इलेक्ट्रान होते हैं उतने ही प्रोटोन होते हैं |
रदरफोर्ड मोडल की कमियाँ
1. मैक्सवेल के अनुसार जब इलेक्ट्रान वृताकार पथ में घूमता हैं तो विकिरण के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करेगा उर्जा कम होने से इलेक्ट्रान सर्पिलाकार गति करता हुआ अंततः नाभिक में चला जायेगा परन्तु वास्तव में एसा नहीं हैं अर्थात परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर सका |
2. परमाणु की इलेक्ट्रान सरंचना को नहीं समझा  सका |
नील्स बोर की परिकल्पना - नील्स बोर ने हाइड्रोजन परमाणु की संरचना और उसके स्पेक्ट्रम के आधार पर यह परिकल्पना दी
1. परमाणु के केंद्र में नाभिक होता हैं नाभिक में धनावेशित कण प्रोटोन होते हैं |
2. इलेक्ट्रान नाभिक के चारो ओर निश्चित त्रिज्या तथा उर्जा वाले वृताकार पथ में गति करते हैं जिन्हें कोश या उर्जा स्तर कहते हैं
3. कोश को n से प्रदर्शित करते हैं ये कोश नाभिक के चारो ओर सकेंद्रिय रूप से व्यवस्थित होते हैं |
4. n का मान बढ़ने पर कोश की ऊर्जा का मान भी बढ़ता हैं |
5. इलेक्ट्रान केवल उन्ही कक्षाओ में चक्कर लगाता हैं जिनका कोणीय संवेग mvr = nh/2π  के बराबर हो |
6.  इलेक्ट्रान उर्जा का अवशोषण करके निम्न उर्जा स्तर से उच्च उर्जा स्तर में चले जाते हैं तथा उर्जा का उत्सर्जन कर पुनः उच्च उर्जा स्तर से निम्न उर्जा स्तर में पहुच जाते हैं जिससे रैखिक स्पैक्ट्रम का निर्माण होता हैं |


बोर मोडल की कमियाँ
1. अधिक इलेक्ट्रान वाले परमाणु प्रतिरूप को नहीं समझा सका|
2. परमाणु द्वारा रासायनिक बंध से अणु बनने की क्रिया को बनही समझा पाया |  
तत्वों का वर्गीकरण  गुणधर्मो में समानता के आधार पर तत्वों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से हुए - |
1. डॉबेराइनर का त्रिक नियम . डॉबेराइनर ने तीन तीन तत्वों के ऐसे समूह बनाये जिनमे पहले व तीसरे तत्व के परमाणु भार का औसत बीच वाले तत्त्व के परमाणु भार  के बराबर होता हैं तथा इनके भौतिक तथा रासायनिक गुण भी समान थे | जैसे Li, Na, K
कमी इस नियम से केवल तीन त्रिक ही बन सके थे |
2. न्यूलैंड का अष्टक नियम न्यूलैंड ने तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया तो उन्होंने पाया की आठवें तत्व के गुणधर्म प्रथम तत्व के समान प्राप्त होते हैं उन्होंने इसकी तुलना संगीत के आठ स्वरों से की |
कमी - यह नियम केवल कैल्शियम तक लागु होता हैं
3. मैन्डेलीफ की आवर्त सरणी
आवर्त नियम तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारो के आवर्ती फलन होते हैं |
इनके समय तक केवल 63 तत्व ज्ञात थे |
मैन्डेलीफ की आवर्त सरणी   के गुण -
1. इनकी आवर्त सरणी परमाणु भार पर आधारित थी |
2. तत्वों को परमाणु भार के आरही क्रम में जमाया गया |
3. इनकी आवर्त सरणी में 8 वर्ग तथा 6 आवर्त थे |
4. कुछ तत्वों के लिए रिक्त स्थान रखे गए , उनके गुणधर्मो के बारे में पहले ही भविष्यवाणी कर दी गई |
मैन्डेलीफ की आवर्त सरणी   के दोष  -
1. कुछ स्थानों पर परमाणु भार के बढ़ते क्रम का पालन नहीं किया गया |
2. कुछ समान गुण वाले तत्त्व अलग अलग वर्ग में तथा असमान गुण वाले तत्व एक ही वर्ग में आ गए |
3. हाइड्रोजन को सही स्थान नहीं दिया गया |
4. समस्थानिको को स्थान नहीं दिया गया |
4. मोजले की आधुनिक आवर्त सरणी - मोजले के अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु संख्या के आवर्ती फलन होते हैं |
मोजले की आवर्त सरणी की विशेषता -
1. सारणी परमाणु संख्या पर आधारित हैं |
2. तत्वों को परमाणु संख्या के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया |
3. इनकी आवर्त सरणी में 18 वर्ग तथा 7 आवर्त हैं |
4.धातु को बायीं ओर व अधातु को दाई ओर रखा गया | (उपधातु Be,Si,As,Te, और At )
5. इस सारणी में एक विकर्ण रेखा धातु को अधातु से अलग करती हैं इस रेखा पर उपस्थित तत्व उपधातु कहलाते हैं |
आवर्त
नाम
तत्वों की संख्या
प्रथम
अतिलघु आवर्त
2
द्वितीय व तृतीय
लघु आवर्त
8-8
चतुर्थ व पंचम
दीर्घ आवर्त
18-18
छठा व सातवा
अति दीर्घ आवर्त
32-32

 दो पंक्तिया अलग से बनाई गई जिनमे 14-14 तत्त्व है इनमे पहली पंक्ति लेंथेनाइड तथा दूसरी पंक्ति एक्टिनाइड कहलाती हैं |
S ब्लोक के तत्वों को - क्षारीय एवं क्षारीय मृदा धातु , p ब्लोक के तत्वों को निरूपक या मुख्य तत्त्व , d ब्लोक के तत्वों को संक्रमण तत्त्व ,  f ब्लोक के तत्वों को अंत: संक्रमण तत्त्व कहते हैं |

परमाणु त्रिज्या -किसी परमाणु के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रान से नाभिक के मध्य की दूरी को परमाणु त्रिज्या कहते हैं|
प्रभावी नाभकीय आवेश - परमाणु के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रान पर नाभिक के द्वारा लगने वाला आकर्षण बल प्रभावी नाभिकीय आवेश कहलाता हैं |
वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ कोशो की संख्या भी बढती हैं तथा प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान घटता हैं अत: परमाणु त्रिज्या बढती हैं जबकि आवर्त में बाये से दाए जाने पर इलेक्ट्रान उसी कोश में भरने के कारण प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता हैं अत: परमाणु त्रिज्या कम होती हैं |  

आयनिक त्रिज्या  जब परमाणु इलेक्ट्रान त्यागता हैं तो धन आयन तथा इलेक्ट्रान ग्रहण करता हैं तो ऋण आयन बनता हैं किसी आयन की त्रिज्या को ही आयनिक त्रिज्या कहते हैं

किसी परमाणु के बाह्यतम कोश से इलेक्ट्रान निकलने पर बाह्यतम कोश समाप्त हो जाता हैं तथा शेष इलेक्ट्रोनो पर प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ जाने के कारण धनायन का आकर उदासीन परमाणु से छोटा होता हैं |

किसी परमाणु द्वारा इलेक्ट्रान ग्रहण किये जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान घटता हैं अत: ऋण आयन का आकर हमेशा उदासीन परमाणु से बड़ा होता हैं

आयनन एन्थैल्पी ( आयनन विभव ) गैसीय अवस्था में किसी उदासीन परमाणु के बाह्यतम कोश से एक इलेक्ट्रान निकलने के लिए दी गई उर्जा को आयनन विभव कहते हैं | क्योकि इसमें ऊर्जा दी जाती हैं अत: इसका मान धनात्मक होता हैं |
                       प्रथम आयनन विभव(IE)  द्वितीय आयनन विभव(IE) तृतीय आयनन विभव(IE)
एक ही आवर्त में बाये से दाए जाने पर परमाणु आकर कम होने से प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ने से परमाणु से इलेक्ट्रान पृथक करना कठिन हो जाता हैं अत: आयनन विभव का मान बढ़ता हैं | जबकि वर्ग में ऊपर से निचे जाने पर परमाणु आकर बढ़ने से प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान कम होने से परमाणु से इलेक्ट्रान पृथक करना सरल हो जाता हैं इस कारण आयनन विभव का मान घटता हैं |

इलेक्ट्रान बंधुता (इलेक्ट्रान लब्धि एन्थैल्पी) - गैसीय अवस्था में किसी उदासीन परमाणु के बाह्यतम कोश से एक इलेक्ट्रान ग्रहण करने से मुक्त हुई ऊर्जा इलेक्ट्रान बंधुता कहलाती हैं  | इसका मान धनात्मक या ऋणात्मक होता हैं |

एक ही आवर्त में बाये से दाए जाने पर परमाणु आकर कम होने से प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ने से इलेक्ट्रान बंधुता का मान बढ़ता हैं  | जबकि वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकर में अनियमितता पाई जाती हैं |

विद्युत् ऋणता - सहसंयोजक यौगिको में दो असमान परमाणुओ के मध्य बने हुए बंध पर उपस्थित इलेक्ट्रान को परमाणु द्वारा अपनी ओर आकर्षित करने के गुण को विद्युत् ऋणता  कहते हैं 

वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकर बढ़ जाने के कारण विद्युत् ऋणता का मान घटता हैं | जबकि आवर्त में बाए से दाए जाने पर परमाणु आकर छोटा हो जाने के कारण तत्वों की विद्युत् ऋणता का मान बढ़ता हैं |  IMP.  सर्वाधिक विद्युत् ऋणी तत्व फ्लोरीन (F)  |
संयोजकता - किसी तत्व के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रानो की संख्या उस तत्त्व की संयोजकता का निर्धारण करती हैं 


जिन तत्वों की संयोजकता एक से अधिक होती हैं उन्हें परिवर्ती संयोजकता कहते हैं |
आवर्त में बाये से दाए जाने पर संयोजकता 1 से 4 तक पहले बढती हैं फिर घटती जाती हैं |
सहसंयोजक त्रिज्या - एक ही तत्त्व के दो सामान परमाणु सहसंयोजक बंध से जुड़े हो तो दोनों परमाणुओ के नाभिक के बीच की दूरी का आधा उस परमाणु की सहसंयोजक त्रिज्या कहलाती हैं |
वांडरवाल त्रिज्या - एक ही पदार्थ के दो निकट स्थित अनाबंधित अणुओ के परमाणु के बीच की दुरी का आधा वांडरवाल त्रिज्या कहलाती हैं |

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